सच्चा प्रेम क्या होता है – प्रेम पर छोटा सा निबंध

 मनुष्य को सबसे समान रूप से प्रेम क्यों करना चाहिए ?


प्रत्येक  मनुष्य के असंख्य और विविध जन्मो में कभी न कभी अन्य प्रत्येक जीव् किसी न किसी रूप में उसे प्रिय रहा है इस विश्व की सारी वस्तुए प्रभु से निकलती है  इसलिए वे सभी हमारे प्रेम के योग्य है | अंतत : हम सभी ऐसे बिंदु पर पहुचेंगे , जहा हम सभी समान होंगे |

प्रेम में किसी से भी घृणा के लिए कोई जगह नहीं |

जीवन की हर इच्छा के पीछे एक ही मांग है – वह है प्रेम | प्राय: मनुष्य दु:खी है की हमको कोई प्यार नहीं करता | क्यों नहीं करता भाई ? तुमने यह धारणा कर ली है मन में | प्यार तो आपका स्वभाव है , स्वरूप है | प्रेम भीतर की चाह है | जो तुम हो वही प्रेम है |  यदि कोई तुमे प्यार नहीं करे , वे तनाव से भरे हुए  है | तुमको उनके प्रति दया और करुणा होनी चाहिए |

दया दिल में रहती है परन्तु करुणा पूरी काया में निवास करती है | जीवन में परेशानियाँ , तकलीफ ,दर्द ,अशांति और दुख सब होता भी प्रेम से ही है |  व्यक्ति से प्रेम हो जाए , वही फिर मोह का कारण बन जाता है | वस्तु से प्रेम हो जाए तो लोभ हो जाता है |अपनी स्थिति से प्रेम हो जाए तो उसको मद ( अहंकार ) कहते है |

ममता, अपनेपन से प्रेम यदि अधिक मात्रा में हो जाए तो उसे ईष्र्या कहते है | प्रेम अभीष्ट , शाश्वत है , फिर भी उसके साथ जुड़ा हुआ यह सब अनिष्ट – किसी को पसंद नहीं है | फिर भी जीवन की तलाश क्या है ? हमें एक ऐसा प्रेम मिले , जिसमे कोई विकार नहीं हो , दुख .बंधन महसूस नहीं हो | जीवनभर प्रेम की तलाश चलती रहती है |

बाल्यावस्था : बचपन में प्रेम को खिलोनो व् खेलो में खोजते है |

युवावस्था : फिर उसी प्रेम को दोस्तों व् साथी – संगियो में खोजते है |

वृध्दावस्था : फिर आगे चलकर , बच्चो ( नाती – पोतो ) में खोजते है |

समापनवस्था : अंत में कुछ भी हाथ में नहीं आता , खाली ही रह जाता है |

प्रेम को हम वाणी से अभिव्यक्त नहीं कर सकते | एक दिल से प्रणाम , एक फूल को चढ़ाना , समपर्ण करना , दो बूंद आंसू गिराना , ये शब्दों से अधिक मूल्यवान है | मधुमक्खी के लिए फूल ही जीवन का अमृत –स्र्तोत है | फूल के लिए मधुमक्खी प्रेम का सन्देश लाती है |

हजारो चेष्टाओ से भी शक्तिशाली एक मौन की घड़ी ! मौन माने क्या ? मन को इकट्ठा करना | बिखरे हुए मन को हर जगह से , हर तरफ से लाकर एक जगह समेट लेना , यही मौन है |

तुमारे अन्दर एक गहराई और नि : शब्दता  विधमान है |

जब तुम सिमट जाते हो चारो और से , तब तुम ही प्रेम हो जाते हो |  यदि प्रेम है भीतर तो वह झलकता है | प्रेम में न कोई गुण है , न कोई कामना | अकसर प्रेम किसी गुण से समन्धित होता है

सतोगुणी प्रेम : जो सत्य के प्रति , धर्म के प्रति , ओर समाज के कल्याण के प्रति होता है |

रजोगुणी प्रेम :  जिससे तुम आकांशा करते हो | ‘ मैने प्यार किया तुमको , तुम किया दोगे मुझको ‘? प्यार के ऊपर सवार हो जाना |

तमोगुणी प्रेम : आंतकवादी का प्रेम इसी तरह का होता है | कोई आतंकवादी हो नहीं सकता , यदि उसके मन में प्रेम नहीं होता | वह आतंकवादी इसलिए बना क्यूंकि किसी मकसद के साथ उसका प्रेम है | किसी लक्ष्य के प्रति उसका प्रेम इतना अधिक हो जाता है  की किसी की भी जान लेने व् देने के लिए तेयार हो जाता है | यह प्रेम से ही होता है |

प्रेम ( आकर्षण , सुन्दरता , आसक्ति ,मोह ) के वशीभूत होकर जो सम्बन्ध ‘ तुमारे बिना जी नहीं सकता ‘ इस भाव से आरंभ होता है , वह तुम्हारे साथ रह नहीं सकता पर समाप्त हो जाता है |

“  कामना उसी वस्तु की होती है जो अपनी नहीं है |

    अपना हो जाने पर कामना नहीं होती ”

Raaj Kumar
Raaj Kumar

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