एकता की अद्भुत शक्ति Essay on Unity is Strength ( Hindi )

एकता की अद्भुत शक्ति

  अर्थवेद में कहा गया है –
 “ कृते में दक्षिणो हस्ते , जयो में सव्य आहित:”
 अथार्थ मेरे दाहिने हाथ में कर्म है और मेरे बांये हाथ में सफलता रखी हुई है |
यहाँ हमारा उधेश्य केवल हाथ शब्द से है सभी अंगुलिया के मिलने से ही हाथ बनता है | नीति का वचन है की अंगुलियों की एकता के बिना एक तिनका भी नहीं उठाया जा सकता है |इसलिए मनुष्य अपना कर्म तभी कर पायेगा , जब सब अंगुलियाँ मिलकर उसका हाथ बने | हमारा शरीर भी तो पांच तत्वों से मिलकर बना है – जल , वायु , अग्नि ,आकाश और प्रथ्वी |
इस प्रकार हमने देखा की एकता शब्द अपने आप में ही सामूहिकता को समेटे हुए है | स्रष्टि का प्रत्येक अणु एकता के सूत्र में बंधे हुए है | एकता की पहली झलक हम पाठशाला में पाते है | कई विधार्थी मिलकर कक्षा और कई कक्षाए मिलकर विधालय का रूप लेती है | विधालय में सामूहिक प्रार्थना की ध्वनि की तरंगे हमारे अंतर्मन को प्रभावित करती है |

शिक्षण के समय भी गुरुजन यही सिखाते है की संगठन में ही शक्ति है | इसी प्रकार परिवार में सभी सदस्य जब मिलजुल कर किसी पारिवारिक समस्या जैसे – विवाह ,व्यापार , या भूमि विवाद आदि के बारे में विचार विमर्श करते है तो उसका समाधान आसानी से मिल जाता है |
समाज में मनाये जाने वाले विभिन्न त्यौहार ,मेले ,उत्सव और रीती रिवाजो के मूल में एकता की भावना छिपी हुई है |
किसी भी आयोजन की शोभा तबतक नही होती ,जबतक की स्वेच्छा से कार्य करते है ,तब सभी के चेहरों पर एक आत्मसंतोष दिखाई देता है |
एकता की यही भावना अलग अलग जातियों के होते हुए भी हमसब एक है का पाठ पढाती है |
धार्मिक द्रष्टि से यदि हम देखे तो पाएंगे कि देवी –देवताओ के एकीकृत रूप की पूजा –अर्चना  अनुष्ठान पूरा होता है |किसी एक ग्रह का आहान न करके , नो ग्रहों को पूजा जाता है | हिन्दू धर्म की तीन प्रधान देविया है – सरस्वती ,लक्ष्मी और दुर्गा – जो क्रमश : बुध्दि ,धन और बल की अधिष्ठात्री देवी है | इसी प्रकार ईश्वर के तीन रूप है – ब्रह्मा , विष्णु और महेश | इन तीनो देवो की शक्तिरूपी तीनो देवियाँ ही है |
स्रष्टि की रचना में बुध्दि की आवश्यकता होती है इसलिए  ब्रह्मा की शक्ति बुध्दि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती है | पालन पोषण के लिए सम्पति की आवश्यकता होती है इसलिए विष्णु की सम्पति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी है और संहार करने में बल की आवश्यकता होती है इसलिए शिव की शक्ति बल की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा है | इस प्रकार इन सभी देवी देवताओ के सामूहिक प्रयासों से ही स्रष्टि का चक्र चलता है |
कवियों ,लेखको और विचारको ने भी अपनी रचनाओ में एकता को महत्व दिया है | उनके अनुसार –

“ मानव मानव एक समान
 एक जाति की हम सन्तान  ”

प्रसिध कवि श्री सुब्रहणयम भारती की कविता की पंक्ति है – 

“ एक हमारा कुटुम्ब कबीला , एक हमारा कुल परिवार
जाति एक है ,नीति एक है ,हम सब है भारत की शान ”

गुरु नानक देव ने भी हिन्दू मुस्लिम एकता को अपने शब्दों में इस प्रकार से प्रकट किया – ईश्वर एक सर्वशक्ति है , जो हिन्दुओ के लिए गुरु के रूप में और मुसलमानों के लिए पीर के रूप में पूजी जाति है |
स्वामी विवेकानंद ने कहा था – “ जो कुछ में हूँ और जो कुछ सारी दुनिया एक दिन बनेगी , वह मेरे गुरु श्री रामक्रष्ण परमहंस के कारण है | उन्होंने हिंदुत्व ,इस्लाम और ईसाई मत में वह अपूर्व एकता खोजी , जो सब चीजो के भीतर रमी हुई है | मेरे गुरु उस एकता के अवतार थे , उन्होने उस एकता का अनुभव किया , सबको उसका उपदेश दिया ”
इतिहास इस बात का साक्षी है की जब जब राष्ठ्रीय एकता की डोर ढीली पड़ी ,तब तब हमारी सभ्यता और संस्कृति को असुरक्षा की दीमक लगी |
परन्तु हमे यह नहीं भूलना चाहिए की एकता ही हमारी शक्ति ,हमारी आन , हमारी शान और हमारी पहचान है | राष्ट्र रूपी जंजीर की एकता ही वह कड़ी है जो हमारे विभिन्न धर्मो , सम्प्रादाओ , जातियो ,आस्थाओ ओर विश्वासों को जोड़े हुए है |
एकता राष्ट्र को शक्ति देती है | इसके अभाव में राष्ट्र शक्तिहीन हो जाता है | एकता ही राष्ट्र का प्राण है , जब तक एकता है ,तब तक राष्ट्र है | एकता टूटती है , राष्ट्र बिखर जाता है |
आज यदि हम देखे तो विभिन्न राजनितिक दलों में आपसी मतभेद होते है ,पर जब विश्व के अन्य देशो से मतभेद होता है तो सभी दल एक होकर अपने देश के पक्ष को मजबूत करते है |
यही भावना अपने देश की  अटूट एकता को दर्शाती है |
 “यदि चींटिया एका करले तो शेर की खाल खींच सकती है |
मानव जाति को एकता का पाठ चींटियो से सीखना चाहिए || “

Raaj Kumar
Raaj Kumar

My name is Raaj Kumar, Admin of Bloggerwala.com. I am a part-time blogger and SEO expert with a passion for doing something different. I am from India. I am self-employed and always eager to learn something new, which helps me to gain knowledge about many new things.

Articles: 334